-->
त्राटक क्रिया ध्यान की एक विशेष प्रक्रिया है। इसमें ध्यान का मूल आधार एकाग्रता है और उसका चरमलक्ष्य साधक, साधन और साध्य की त्रिपुटी का विलय भी।

त्राटक क्रिया करने के कई विधान हैं और उनके अलग-अलग गुण भी हैं। योग शास्त्रों में किसी वस्तु या इष्ट देवता की मूर्ति पर दृष्टि स्थिर करने को त्राटक कर्म कहा गया है।

त्राटक क्रिया - tratak kriya in hindi
credit : https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Tratak_20677.jpg

त्राटक की पूरी विधि

त्राटक क्रिया ध्यान की एक विशेष प्रक्रिया जिसमे दीपक की ज्योति दृष्टि के समानांतर होती है और दूरी कोई तीन फुट के आसपास। पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन में सुविधानुसार बैठें। किसी कागज पर बनाये चवन्नीभर गोल काले धब्बे को अथवा 'ॐ' लिखे कागज को सामने 3-4 फुट की दूरी पर आंखों के समानांतर दीवार पर लटका दें या सरसों के तेल या शुद्ध घी का दीपक जलाकर सामने रखें। दीपक ऐसे स्थान पर रखें, जहां उसकी लौ हवा में डगमगाए नहीं। उस बिंदु को या दीपक की लौ को अपलक (पलकों को बिना झपकाये) दृष्टि से देखते रहें। जब नेत्रों में जलन होने लगे या पानी आ जाये, तो आंखें बंद कर लें। त्राटक करते समय दृष्टि तथा ध्यान दोनों उसी पदार्थ में रहे, तभी त्राटक में सफलता होगी। त्राटक का समय धीरेधीरे बढायें। इसे कई घंटे भी किया जा सकता है। इसमें आंखों को ज्यादा फैलाकर नहीं देखना बल्कि आंखें हल्की-सी खुली रखनी हैं। आंखों की मांसपेशियां ढीली रहेंगी।

त्राटक क्रिया के लाभ

  • नेत्रों के रोग नष्ट होते हैं।
  • दृष्टि तीव्र होकर दूरदर्शिनी बन जाती है। 
  • तंद्रा, निद्रा व आलस्य दूर भागते हैं ।
  • चित्तवृत्ति सूक्ष्म लक्ष्य में स्थिर होती है।
  • एकाग्रता व स्थिरता आती है।

 

पढ़ें अमेज़न से " ध्यान साधना का सरल अभ्यास " पुस्तक जो न केवल नौसिखिया के लिए है, वास्तव में हर किसी के लिए है, जो ध्यान के उद्देश्य को समझना चाहता है । इस पुस्तक में लेखक ने ध्यान और प्राणायाम की सरल और प्रभावी विधि का वर्णन किया है ।

योग गुरु, बी. के. एस. अयंगर के द्वारा लिखित योगा फॉर एवरीवन पुस्तक पढ़े अमेज़न से  https://amzn.to/3cjqUwF