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जो व्यक्ति धौति नहीं कर सकते, वे कुंजल क्रिया करके आमाशय को शुद्ध कर सकते है। इसे गज करणी के नाम से भी जाना जाता है, यह वमन पंचकर्म से भी मिलता-जुलता है पर वामन में औषधि का प्रयोग होता है । कुंजल क्रिया में गुनगुने पानी को पीकर वमन करना होता है । जिस प्रकार हाथी पानी पीकर सूंड को अपने मुख में डाल कर पीये गये जल को तुरंत बाहर फेंक देता है, उसी तरह प्रकार इस क्रिया को भी करना होता है।

कुंजल क्रिया कैसे करें - Kunjal Kriya Kaise Kare
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कंजल क्रिया खाली पेट करनी चाहिए। किसी दिन दूषित भोजन कर लिया हो या कछ खा लेने के बाद घबराहट हो, तो अनपचे को पेट से बाहर निकालने के लिए इस क्रिया का उपयोग किया जा सकता है। जब बदहजमी हो, खट्टे डकार आ रहेको पच न रहा हो, भोजन पच ना रहा हो, तब भी 'कुंजल' कर सकते हैं। इससे तुरंत राहत मिलेगी। पित्तप्रधान व्यक्तियों के लिए यह क्रिया बहुत लाभदायक है।

कुंजल क्रिया करने की विधि

उत्कटासन में बैठकर 2-3 लीटर हलका गर्म पानी गटागट पी जाएं। फिर खड़े होकर आगे की ओर झुक जाएं। दायें हाथ की तर्जनी और मध्यमा दोनों अंगुलियों को गले के अंदर ले जाकर, गले के अंदर की छोटी लटकती हुई जीभ को हिलाएं। इससे उल्टी आ जाएगी और पानी बाहर निकलेगा। उल्टी आने पर भी अंगुलियों को मुंह से बाहर न निकालें। जीभ को फिर हिलाएं, और पानी निकलेगा। ऐसा 3-4 बार करें, ताकि सारा पानी बाहर निकल जाए। जब तक पूरा पानी बाहर न निकल जाये तब तक झुके रहना भी बहुत आवश्यक है। पानी निकल जाने के बाद ही अंगुलियों को बाहर निकालें और सीधे खडे हों। अभ्यास हो जाने पर अंगुलियां डालने की आवश्यकता नहीं रहेगी। यदि पानी पीने पर वमन न होता हो, तो हलके गर्म पानी में थोड़ा नमक डाला जा सकता है। नमक डालने से उल्टी जल्दी हो जाती है।

कुंजल क्रिया के लाभ

इससे मंदाग्नि, अजीर्ण, पीलिया, कफ के रोग, रक्त विकार, कृमि, विष विकार, त्वचा रोग आदि दूर होते हैं, भूख बढ़ती है, पेट साफ होता है। कमजोर आंत वालों को, संग्रहणी तथा हृदय रोगियों को यह क्रिया नहीं करनी चाहिए। इस क्रिया को स्वस्थ व्यक्ति आरंभ में लगातार 15-20 दिन करें। बाद में, सप्ताह में एक दिन करना काफी है।