नाड़ी शोधन प्राणायाम करने की विधि
नाड़ी शोधन प्राणायाम नाड़ियों अर्थात स्नायुमंडल की शुद्धि के लिए किया जाता है। यह बड़ा ही सरल प्राणायाम है और बहुत उपयोगी भी।मन को एकाग्र कर आप इसके क्रम को बढ़ाएं।
रोगी तथा दुर्बल व्यक्ति इस प्राणायाम से विशेष लाभ ले सकते हैं। हृदय तथा श्वास रोगियों के लिए यह अति उत्तम प्राणायाम है जिससे मन शांत तथा नाड़ियां शुद्ध होती हैं।
इसे तीन-चार बार प्रतिदिन करते हुए अभ्यास को बढ़ाएं। उतनी देर श्वास रोकना है, जितनी देर आप आराम से रोक सकें और जब सांस छोड़ें, तो छोड़ने की गति धीमी हो। जब आपका यह अभ्यास पक्का हो जाए तो श्वास का क्रम बना लें। यदि श्वास लेने में 4 सेकेंड लगें, तो 8 सेकेंड तक श्वास रोकें और 8 सेकेंड में ही श्वास को बाहर निकालें। यानी एक, दो और दो (1:2:2) का अनुपात । इस अनुपात को 1: 4:2 तक बढ़ाएं। श्वास रोकने में शक्ति नहीं लगानी है।
नाड़ीशोधन प्राणायाम में विशेष ध्यान देने योग्य बातें हैं पूरक, कुंभक और रेचक की क्रियाओं में एक विशेष अनुपात का होना तथा रेचक करते समय नासिका से अधिक दूरी पर श्वास का अनुभव न होना।
पूरक तथा रेचक का अर्थ केवल श्वास लेना अथवा छोड़ना नहीं है। योग की भाषा में साधारण श्वास लेने व छोड़ने को श्वास-प्रश्वास कहते हैं। परंतु प्राणायाम में परक और रेचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जिनका अर्थ है प्रयत्नपूर्वक व सावधानी से धीरे-धीरे श्वास भरना तथा छोड़ना । कुंभ का अर्थ है घड़ा अर्थात् श्वास को घड़े में भरकर रखने के समान रोकना कुंभक हुआ।
आंतरिक कुंभक में जब हम श्वास रोकते हैं, तो अपने फेफड़ों को बढ़ाते या फुलाते हैं तथा उनमें शुद्ध हवा भरते हैं। फेफड़ों के छोटे-छोटे छिद्र एवं स्नायु शुद्ध होते हैं और उन्हें बल मिलता है। बाह्य कुंभक में जब श्वास बाहर रोकते हैं, तो फेफड़ों के स्नायु सिकुड़ जाते हैं और उनमें से अशुद्ध हवा पूरी तरह बाहर निकल जाती है, जिससे सारा शरीर शुद्ध, निर्मल तथा हल्का हो जाता है और दीर्घायु प्राप्त होती है।
साधारणत: हम तुरंत श्वास लेकर छोड़ देते हैं। इस प्रकार शुद्ध वायु का उपयोग पूरी तरह से शरीर में नहीं हो पाता। कुंभक को ठीक प्रकार से सिद्ध कर लेने की महिमा अवर्णनीय है। सभी जानते हैं कि हम जब भी कोई काम शक्ति के द्वारा करते हैं, तो श्वास रोककर ही करते हैं। किसी प्रकार का बोझ उठाना, परिश्रम का काम करना, गोला फेंकना, राइफल चलाना आदि सभी कार्य कुछ क्षण के लिए ही क्यों न हों ,श्वास रोककर ही किये जाते हैं। कुंभक के द्वारा हम अपने शरीर की शक्ति की क्षमता बढ़ा सकते हैं।
सरल होने के बावजूद कुंभक कठिन क्रिया नहीं है, क्योंकि इसमें केवल श्वास रोकना ही होता है। यह क्रिया असाधारण शक्ति देने वाली है। अनुपात से अधिक कुंभक करना, बिना पहले के अभ्यास को पक्का किये आगे की क्रिया करना या ठीक व नियमित रूप से कुंभक न करना लाभ नहीं देता। अत: अपना अभ्यास सावधानी पूर्वक, धीरे-धीरे व नियमित रूप से बढ़ाना चाहिए ताकि लाभ हो, हानि न हो।
नाड़ीशोधन की पहली अवस्था अलोम-विलोम है।
- पद्मासन में बैठे।
- बायीं नासिका से श्वास भरें और दायीं से छोड़े, फिर दायीं से भरें और बायीं से छोड़ें।
- इसी प्रकार 5-7 मिनट इसका अभ्यास करें।
- प्रयास करें कि जितना समय श्वास लेने में लगे, उतना ही समय श्वास छोड़ने में भी लगे और लय भी एक जैसी हो।
- इसका अभ्यास हो जाने के बाद रेचक का समय दोगुना कर दें।
रोगी तथा दुर्बल व्यक्ति इस प्राणायाम से विशेष लाभ ले सकते हैं। हृदय तथा श्वास रोगियों के लिए यह अति उत्तम प्राणायाम है जिससे मन शांत तथा नाड़ियां शुद्ध होती हैं।
credit : yogainstantly.in |
नाड़ी शोधन प्राणायाम कैसे करें
- सिद्धासन, पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं। श्वास को शांत करें।
- दायें हाथ की दोनों पहली अंगुलियों को मोड़ते हुए दायीं नासिका को अंगूठे से बंद कर लें और श्वास को बायीं नासिका से भरें ।
- चौथी एवं पांचवीं अंगुली से बायीं नासिका को बंद कर लें और कुछ क्षण आंतरिक कुंभक करें।
- अंगूठे को हटाकर दायीं नासिका से धीरे-धीरे श्वास निकाल दें।
- फिर दायीं नासिका से श्वास लें। दोनों नासिकाएं बंद करें।
- फिर बायीं नासिका से श्वास बाहर निकाल दें। यह नाड़ीशोधन प्राणायाम की एक आवृत्ति हुई।
इसे तीन-चार बार प्रतिदिन करते हुए अभ्यास को बढ़ाएं। उतनी देर श्वास रोकना है, जितनी देर आप आराम से रोक सकें और जब सांस छोड़ें, तो छोड़ने की गति धीमी हो। जब आपका यह अभ्यास पक्का हो जाए तो श्वास का क्रम बना लें। यदि श्वास लेने में 4 सेकेंड लगें, तो 8 सेकेंड तक श्वास रोकें और 8 सेकेंड में ही श्वास को बाहर निकालें। यानी एक, दो और दो (1:2:2) का अनुपात । इस अनुपात को 1: 4:2 तक बढ़ाएं। श्वास रोकने में शक्ति नहीं लगानी है।
नाड़ीशोधन प्राणायाम में विशेष ध्यान देने योग्य बातें हैं पूरक, कुंभक और रेचक की क्रियाओं में एक विशेष अनुपात का होना तथा रेचक करते समय नासिका से अधिक दूरी पर श्वास का अनुभव न होना।
पूरक तथा रेचक का अर्थ केवल श्वास लेना अथवा छोड़ना नहीं है। योग की भाषा में साधारण श्वास लेने व छोड़ने को श्वास-प्रश्वास कहते हैं। परंतु प्राणायाम में परक और रेचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जिनका अर्थ है प्रयत्नपूर्वक व सावधानी से धीरे-धीरे श्वास भरना तथा छोड़ना । कुंभ का अर्थ है घड़ा अर्थात् श्वास को घड़े में भरकर रखने के समान रोकना कुंभक हुआ।
आंतरिक कुंभक में जब हम श्वास रोकते हैं, तो अपने फेफड़ों को बढ़ाते या फुलाते हैं तथा उनमें शुद्ध हवा भरते हैं। फेफड़ों के छोटे-छोटे छिद्र एवं स्नायु शुद्ध होते हैं और उन्हें बल मिलता है। बाह्य कुंभक में जब श्वास बाहर रोकते हैं, तो फेफड़ों के स्नायु सिकुड़ जाते हैं और उनमें से अशुद्ध हवा पूरी तरह बाहर निकल जाती है, जिससे सारा शरीर शुद्ध, निर्मल तथा हल्का हो जाता है और दीर्घायु प्राप्त होती है।
साधारणत: हम तुरंत श्वास लेकर छोड़ देते हैं। इस प्रकार शुद्ध वायु का उपयोग पूरी तरह से शरीर में नहीं हो पाता। कुंभक को ठीक प्रकार से सिद्ध कर लेने की महिमा अवर्णनीय है। सभी जानते हैं कि हम जब भी कोई काम शक्ति के द्वारा करते हैं, तो श्वास रोककर ही करते हैं। किसी प्रकार का बोझ उठाना, परिश्रम का काम करना, गोला फेंकना, राइफल चलाना आदि सभी कार्य कुछ क्षण के लिए ही क्यों न हों ,श्वास रोककर ही किये जाते हैं। कुंभक के द्वारा हम अपने शरीर की शक्ति की क्षमता बढ़ा सकते हैं।
सरल होने के बावजूद कुंभक कठिन क्रिया नहीं है, क्योंकि इसमें केवल श्वास रोकना ही होता है। यह क्रिया असाधारण शक्ति देने वाली है। अनुपात से अधिक कुंभक करना, बिना पहले के अभ्यास को पक्का किये आगे की क्रिया करना या ठीक व नियमित रूप से कुंभक न करना लाभ नहीं देता। अत: अपना अभ्यास सावधानी पूर्वक, धीरे-धीरे व नियमित रूप से बढ़ाना चाहिए ताकि लाभ हो, हानि न हो।
नाड़ी शोधन प्राणायाम के लाभ
नाड़ीशोधन प्राणायाम एक उत्तम प्राणायाम है। यह स्नायविक बीमारियों, फेफड़ों के रोगों, हृदय की घबराहट या दुर्बलता आदि में विशेष लाभदायक है। जिस व्यक्ति को रक्तचाप (Blood Pressure) का रोग हो, उसे कुंभक नहीं करना चाहिए। वह केवल पूरक और रेचक का अभ्यास करे। धीरे-धीरे रोग ठीक होने पर कुंभक का थोड़ा-थोड़ा अभ्यास करे। नाड़ीशोधन प्राणायाम में ध्यान का केंद्र अनाहत चक्र होता है।
ऊपर बताये गये प्राणायाम के अनेक प्रकारों का प्रतिदिन एक साथ अभ्यास करने की आवश्यकता नहीं । प्राणायाम का अभ्यास किसी जानकार से सीखकर ही करें। इसके गलत आवश्यकता स अधिक करने से हानि का डर रहता है। अपनी शारीरिक सामथ्यक अनुसार अपने अनुकूल प्राणायाम का चनावकर धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाना चाहिए। साधारणतया स्वस्थ रहने के लिए प्रतिदिन 10-15 मिनट के लिए नाड़ीशोधन, उज्जाया तथा ऋतु के अनुसार कपालभाति, भस्त्रिका, शीतली प्राणायाम का अभ्यास करे ।
पढ़ें अमेज़न से " ध्यान साधना का सरल अभ्यास " पुस्तक जो न केवल नौसिखिया के लिए है, वास्तव में हर किसी के लिए है, जो ध्यान के उद्देश्य को समझना चाहता है । इस पुस्तक में लेखक ने ध्यान और प्राणायाम की सरल और प्रभावी विधि का वर्णन किया है ।