भ्रामरी प्राणायाम
भ्रामरी प्राणायाम का नाम, काली रंग की भारत में पाएं जाने वाली मधुमक्खी से उत्पन्न हुआ है, जिसे "भ्रामरी" भी कहा जाता है। उत्तेजित करने वाले विचार, हताशा, चिंता और क्रोध से छुटकारा पाने के लिए यह सर्वोत्तम व्यायाम है। घर हो या कार्यालय, सरल होने के कारण इसे कही भी किया जा सकता है।
आप किसी भी योगासन से पहले इसका अभ्यास कर सकते हैं।
भ्रामरी प्राणायाम का अर्थ
भ्रामरी एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ मधुमक्खी है । इस प्राणायाम अभ्यास के दौरान गले के पीछे उत्पन्न होने वाली ध्वनि मधुमक्खी के गुनगुनाहट स्वर से मिलती-जुलती होती है, इसलिए इसे भ्रामरी प्राणायाम कहा जाता है।भ्रामरी प्राणायाम के लाभ
- इस करने से हल्का सिरदर्द, तनाव, क्रोध और चिंता से तुरंत राहत मिलती है।
- यह उत्तेजित मन को शांत करता इसलिए यह उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों के लिए एक बहुत प्रभावी श्वास तकनीक है ।
- एकाग्रता और याददाश्त बढ़ाने में लाभकारी है।
- आवाज को मजबूत और बेहतर बनाता है।
- सुनने की क्षमता में सुधार होता है।
भ्रामरी प्राणायाम कैसे करें
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- प्राणायाम शुरू करने से पहले शांतिपूर्ण जगह की खोज करें।
- एक आरामदायक जगह पर कमल मुद्रा या आसान मुद्रा में बैठें।
- यदि आप बैठने में असहज महसूस करते है तो कुर्सी का इस्तेमाल कर सकते है।
- रीढ़ को पूरी तरह से सीधा रखे और आंखे बंद करे।
- नाक से गहरा सांस अंदर ले ।
- दोनों हाथो के अंगूठो को कान के भीतर डालें।
- और हाथो कि पहली दोनों उंगलियों (तर्जनी) को माथे पर रखे और अन्य उंगलियों को बंद आंखों पर रखे।
- मुंह को बंद रखते हुई, सांस को बाहर निकलते हुए ओम का उच्चारण करे जिसे हममममम ध्वनि उत्पन्न होगी।
- 11 से ले कर 21 बार इसका अभ्यास कर सकते है।
दिन के किसी भी समय, खाली पेट इसका अभ्यास किया सकता हैं।
भ्रामरी प्राणायाम करते समय सावधानियां
- इसका अभ्यास गर्भवती या मासिक धर्म वाली महिलाओं को नहीं करना चाहिए।
- उच्च रक्तचाप, मिर्गी, छाती में दर्द या कान संक्रमण वाले व्यक्तियों को भी इसे करने से बचना चाहिए।
- भारी भोजन करने के बाद अभ्यास न करें।