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वीरभद्र भगवान शिव द्वारा निर्मित एक पौराणिक चरित्र है, और इस मुद्रा का नाम वहीं से पड़ा है। वीरभद्रासन, एक महान योद्धा के पराक्रम का प्रतिष्ठा करने वाला एक आसन है। इसलिए, इसे अंग्रेजी भाषा में Warrior 1 yoga pose के नाम से भी जाना जाता है।

यह नाम संस्कृत के शब्दो से मिल कर बना है, वीरभद्र जो की एक पौराणिक योद्धा और आसन कर से मिल बना है।

वीरभद्रासन के फायदे - Virabhadrasana benefits in hindi
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वीरभद्रासन के लाभ

इस योग आसन के नियमित अभ्यास से सभी खड़े योगासन में सुधार होता है। छाती और धड़ के दोनों किनारों पर एक उत्कृष्ट खिंचाव महसूस होता है, जिससे गहरी सांस लेने में आसानी होती है। बाजुओं को ऊपर की ओर बढ़ाने से कंधों को मजबूती मिलती है। कंधों को खोलते समय रीढ़ की हड्डी में एक मोड़ आता है, जो बैकबेंड के अभ्यास के लिए उपयुक्त है।
  • यह आसन पीठ की मांसपेशियों, नितंबों और हैमस्ट्रिंग को मजबूत करता है और संतुलन में सुधार करने में मदद करता है। 
  • धड़ और बाजुओं को ऊपर उठाने से बाजुओं, कंधों और पीठ में मजबूती आती है। 
  • बाइसेप्स और ट्राइसेप्स को मजबूत करता है।
  • कंधे के जोड़ों को खोलने और ताकत और स्थिरता बनाने में मदद करता है। 
  • यह आसन पेट और बाहरी कूल्हों को टोन करता है।

वीरभद्रासन कैसे करते हैं

  • सीधे खड़े हो जाएं और अपने पैरों को लगभग तीन से चार फीट की दूरी पर फैलाएं। आपका दाहिना पैर आगे और बायां पैर पीछे होना चाहिए।
  • अब, अपने दाहिने पैर को 90 डिग्री और बाएं को 15 डिग्री से बाहर की ओर मोड़ें, यह सुनिश्चित कर लें कि दाहिने पैर की एड़ी बाएं पैर के केंद्र के साथ पूरी तरह से संरेखित हो।
  • दोनों हाथ हो ऊपर की ले कर जाये और नमस्कार मुद्रा बने। अपने सिर सीधा रखने और सामने की और देखिए।
  • 10-20 सेकंड के लिए मुद्रा को बनाए रखें। 
  • इस मुद्रा को बाईं ओर दोहराएं, अपने बाएं पैर को आगे और दाएं पैर को पीछे की ओर रखें।

एहतियात

  • इस आसन को करने से पहले इन चेतावनी संकेतों पर ध्यान दें।
  • उच्च रक्तचाप के रोगियों को इस आसन को नहीं करना चाहिए।
  • यदि आपको गर्दन की समस्या होने पर इसे न करे।
  • दिल की समस्या होने इसका अभ्यास न कर।
  • अगर आपको घुटने में दर्द है या घुटने में चोट है तो इस आसन से परहेज करें।