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योगासनों के बाद यदि आधा घंटा आपको आराम के लिए मिल जाए, तो आप शारीरिक तथा मानसिक रूप से ताजापन महसूस कर सकते हैं क्योंकि तब शरीर में पैदा हुई ऊर्जा आपके शरीर और मन में स्फूर्ति का संचार कर देगी। यही विश्राम की स्थिति और ताजगी आपके रोगों की परम औषधि है। इस बात को आज स्वास्थ्य विज्ञान के विद्वान भी मान रहे हैं कि यदि शरीर शुद्ध हो जाये और मन शांत हो जाये तो बिना औषधि के भी रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है।

योग निद्रा क्या है

योग निद्रा एक प्राचीन तकनीक है, जिसमे योगी स्वयं को खोजता है। इस स्थिति में योगी न तो सचेत और नहीं ही निद्रा में होता है।

योगनिद्रा के अभ्यास द्वारा चाहते हुए (अपने ही निरीक्षण में) शरीर और मन को विश्राम की स्थिति में पहुंचाने का प्रयास किया जाता है। इस विधि में साधक स्वयं को स्वयं ही निर्देश देता है। इस अभ्यास द्वारा वह इच्छा की स्थिति का अनुभव करते हुए धीरे-धीरे उन शारीरिक और मानसिक क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं पर भी नियंत्रण प्राप्त करने लगता है, जिन्हें अब तक अनचाही या अनैच्छिक मानता था।

योग निद्रा की विधि

अभ्यास करने के लिए शवासन में लेट जाएं। आंखें मूंद लें। अपने ध्यान को श्वास-प्रश्वास (सांस के बाहर-भीतर जाने पर) पर केंद्रित करें। उसे आता-जाता हुआ देखें। जहां भी तनाव महसूस हो, उसे थोड़ा हिला-डुलाकर शिथिल करें। श्वास जितना सूक्ष्म होगा, उतना अधिक आप शिथिल होंगे। योगनिद्रा को 10 मिनट से लेकर 45 मिनट तक आप कर सकते हैं।

योग निद्रा इन हिंदी
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दो मिनट शांत होने के बाद अपने ध्यान को दायें पांव के अंगूठे पर ले जाएं, उसे हिलाएं और शिथिल व शांत करें। इसी प्रकार दूसरी, तीसरी, चौथी और पांचवीं अर्थात् पांचों अंगुलियों को हिलाएं और ढीला छोड़ दें। पांव का पंजा, तलवा, टखना, एड़ी, पिंडली, घुटना, जंघा और कमर सबको हिलाकर शिथिल करें। इसी प्रक्रिया को बाएं पांव के साथ दोहरायें। दोनों पांवों को शिथिल करें फिर जैसा ही महसूस करें। यह अनुभव करें कि रगों में रक्त का प्रवाह बिना किसी रोक-टोक के हो रहा है और विकार रक्त के साथ हृदय की ओर प्रवाहित हो रहे हैं। इस अनुभव को कुछ समय तक बना रहने दें।

अब ध्यान को दाहिने हाथ के अंगूठे पर ले जाएं। एक-एक करके सारी अंगुलियों को हिलाएं और ढीला छोड़ दें। हथेली, कलाई, कोहनी, बाजू, कंधे फिर एक-एक को ढीला छोड़ें और उन्हें निर्देश दें शिथिल होने का। पूरे बाजू को ढीला छोड़ दें। दोनों हाथों और पांवों के शिथिल रूप को महसूस करें।

हाथ और पैर के बाद अपने ध्यान को पांचन संस्थान पर केंद्रित करें, उससे संबंधित प्रत्येक अंग को उपरोक्त प्रकार से ही निर्देश दें। अब आधे फेफड़ों और हृदय पर ध्यान को ले जाएं और अनुभव करें कि गंदा खून फेफड़ों की ओर प्रवाहित हो रहा है। फेफड़ों में पहुंचकर वह शुद्ध हो रहा है। गहरी सांस लें, कम-से-कम तीन-चार बार। उस शुद्ध रक्त को हृदय की ओर वापस जाते हुए देखें। कुछ समय तक फेफड़ों और हृदय के इस आपसी संबंध का निरीक्षण करें। सांस की गति गहरी ही रहे।

संपूर्ण शरीर की क्रियाओं का आधार मेरुदंड है, इसलिए ध्यान को उसके एक-एक मोहरे पर ले जाएं- ईडा, पिंगला और सुषुम्ना को भी इसी के साथ जोड़कर देखें। एक-एक करके समस्त ग्रंथियों पर अपने ध्यान को केंद्रित करें। उन्हें 'सम' रहने के निर्देश दें। जिह्वा, दांत, नाक, आंख, कान आदि को। अपने ध्यान का विषय बनायें। आंखें बंद करें - दो-चार बार। मस्तिष्क पर ध्यान ले जाते हुए उसे संपूर्ण रूप से देखने का (महसूस करने का प्रयास करें। अनुभव करें कि समचा शरीर शिथिल हा गया है। समस्त कार्य नियंत्रण और देख-देख में हो रहा है। सभी विकार नाक, त्वचा, लिंग व गुदा आदि से बाहर हो रहे हैं। संपूर्ण शरीर और मन शुद्ध हो गया है।

उपरोक्त विचार करते हए ही कछ समय तक लेटे रहें। ध्यान को श्वास पर श्वास को अपने ध्यान का आधार बनाएं। जितना समय दे सकते हैं, दें, फिर उठकर बठ जाएं। लंबे-गहरे श्वास लें। प्रत्येक श्वास को भीतर खींचते हुए अनुभव करें कि श्वास के साथ प्रकृति की सारी ऊर्जा प्रवेश कर रही है। श्वास को बाहर निकालते समय महसूस करें, मानो सारे विकार जलकर बाहर को जा रहे हैं।