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सर्वांगासन को सभी योग आसन का राजा कहा जाता है क्यों यह शरीर के सभी अंग पर परभव डालता है । इस आसन का उल्लेख हठ योग में भी किया जयते है ।

सर्वांगासन रक्त संचार को शुद्ध व पुष्ट करने तथा गंदे खून की नालियों (शिराओं) को साफ करने के लिए विशेष लाभकारी है। हम लोग सारा दिन या तो खड़े रहते हैं या फिर बैठे रहते हैं। हमारा हृदय (जो छाती के बायीं ओर स्थित है) शरीर को पुष्ट करने के लिए रक्त को सारे शरीर में धमनियों द्वारा पहुंचाता है। जब रक्त हृदय से चलता है, तो इसमें ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा होती है इसलिए वह रगों में तेजी से दौड़ता है और शरीर के हर अंग तक आसानी से पहुंच जाता है, लेकिन जब उसे शरीर का विकार इकट्ठा कर शिराओं द्वारा वापस हृदय की ओर आना होता है, तो एक तो क्योंकि उसमें विकार तथा कार्बन का मात्रा अधिक होती है, इसलिए उसकी गति में कमी आ जाती है, दूसरे उसे क्योंकि ऊपर की ओर आना होता है, इसलिए भी कठिनाई होती है।

इस आसन में जब हम गर्दन से शरीर को उल्टाकर पांव ऊपर कर लेते हैं तो शिराओं को हृदय की ओर रक्त को दौडाने में सुविधा मिलती है, जिससे शिराएं शुद्ध व साफ हो जाती है। शरीर की संदरता बढ़ती है। ग्रीवा में दूलिका ग्रंथी के दब जाने से वह सक्रिय हो जाती है। यह ग्रंथि सारे शरीर का संतुलन बनाती है। खाये हुए भोजन का आवश्यकतानुसार रक्त मांसमज्जा वगैरह बने और उसका शरीर में ठीक तरह से बंटवारा हो इस बात के लिए यह ग्रंथि परी तरह जिम्मेदार होती है। हलासन तथा सर्वांगासन में बहुत अंतर है, इसलिए इस आसन में थोड़ा जल्दी कर सकते हैं। इस आसन का विशेष महत्व पूर्ण स्थिति में 2 से 5 मिनट तक रुके रहने में है, इसलिए इस समय की तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए।

सर्वांगासन की विधि

सर्वांगासन के लाभ - Sarvangasana ke labh
credit : https://pixahive.com/photo/shoulder-stand-sarvangasana/


  • आसन पर सीधे लेटें, पांवों को तान कर श्वास भरते हुए धीरे-धीरे हाथों पर दबाव देते हुए 90 अंश तक ले जाएं।
  • यहां भी कुछ क्षण रुककर श्वास बाहर निकालते हुए, कमर को उठाते हुए टांगों को भूमि से समानांतर करें।
  • अब दोनों हाथों का सहारा पीठ को दें। हाथ जितने नीचे रहेंगे, पीठ उतनी ही सीधी होगी।
  • अब धीरे से दोनों पांवों को आकाश की ओर उठा दें। ठोड़ी कंठकूप में।
  • कंधों से लेकर पांव की अंगुलियों तक शरीर एक सीध में रहे। कोहनियां अंदर की ओर रहें। पांवों को ढीला करें।
  • पूर्ण सर्वांग में आने पर श्वास स्वाभाविक स्थिति में लें।
  • इस आसन का धीरे-धीरे अभ्यास बढ़ाते हुए दस मिनट तक कर सकते हैं। वापिस आते हुए भी कोई झटका न लगे। पहले अपनी टांगों को भूमि के समानांतर करें। फिर पीठ को लगाते हुए 90 अंश तक लाएं और श्वास भरकर पांवों को धीरे-धीरे भूमि पर ले आएं। 
  • नीचे आते ही विश्राम करें। ध्यान विशुद्धि-चक्र पर।

सर्वांगासन के फायदे

जैसा इसका नाम है, वैसे ही इसके गुण हैं ।
  • रक्त शुद्धि, मस्तिष्क एवं फेफड़ों की पुष्टि के लिए बहुत उपयोगी है।
  • इसके करने से रक्त प्रवाह मस्तिष्क की ओर हो जाता है। 
  • यह टांसिल व गले के रोगों की रामबाण दवा है, नेत्र ज्योति को बढाता है, वात रोग तथा रक्त विकार को दूर करता है। 
  • सिर दर्द, रक्त पित्त तथा पांडु रोगों को शांत करता है। 
  • इस आसन से रक्त संचार तेज होता है, यह यौवन प्रदान करता है। 
  • डायफ्राम का मस्तिष्क की ओर खिंचाव होने से सभी पाचन यंत्र सक्रिय बनते हैं।
  • यह त्वचा रोगों को ठीक करता है।

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