शीर्षासन योग, सभी आसनों का राजा
सिर के बल खड़े होने को शीर्षासन कहते हैं। इसे सलम्बा शीर्षासन के नाम से भी जाना जाता है सालम्बा का अर्थ सहारा, शीर्ष का अर्थ सिर और आसन अर्थ का योग मुद्रा है। यह कुछ कठिन आसन में से एक है। इस आसन का अभ्यास बाकी आसनों का अच्छा अभ्यास हो जाने के बाद ही करना चाहिए। इसके अभ्यास में बड़ी सतर्कता और सावधानी बरतनी चाहिए।
शीर्षासन कितनी देर करें
इसे शुरू-शुरू में एक-दो मिनट ही करें, धीरे-धीरे इसका समय आप 10 मिनट तक बढ़ा सकते हैं । गृहस्थ व्यक्ति 10 मिनट से अधिक शीर्षासन न करें। इस आसन का अभ्यास किसी विशेषज्ञ से सीखकर ही करना चाहिए।
शीर्षासन कैसे करे
शुरू-शुरू में शीर्षासन का पहला चरण को दीवार के पास खड़ा करके ही अभ्यास करें ताकि संतुलन बिगड़ जाने की स्थिति में आपकी गर्दन व पीठ की हड्डी या नस-नाड़ी पर चोट न लगे। यदि किसी व्यक्ति को हृदय संबंधी कोई रोग हो या आंख, कान, नाक व गले को कोई रोग चल रहा हो, तो शीर्षासन नहीं करना चाहिए। इस आसन को सब आसनों के बाद ही और निम्नलिखित तीन चरणों में करें।
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शीर्षासन की विधि
पहला चरणः किसी कंबल या मोटे तौलिये की चार तह करें, ताकि गद्दी-सी बन जाये। उस गद्दी की चौड़ाई-लंबाई इतनी होनी चाहिए कि आपके बाजू और सिर उस पर आ जाएं। घुटने मोड़कर उस गद्दी पर झुक जाएं। अब दोनों हाथ की अंगुलियों को एकदूसरे में फंसाकर कोहनियों तक गद्दी पर टिका दें। कोहनियों में कंधों से थोड़ा अधिक फासला रखें। अब सिर के अगले भाग को गद्दे पर टिका दें और दोनों हाथों से सिर को सहारा दें। क्योंकि आपने कोहनियों के सहारे सिर पर संतुलन करना है, इसलिए कोहनियां ठीक स्थिति में टिकी होनी चाहिए। अब घुटनों को अधिक से अधिक छाती की तरफ लाकर पीठ को सीधा करें, पांव का अगला भाग जमीन से स्पर्श करे। इसी स्थिति में अपने को संतुलित करते हुए पांव को उठा दें और घुटनों को मोड़कर एड़ियों को नितंबों के पास ले जाएं इसी स्थिति में सिर के बल खड़े रहने का कुछ दिन अभ्यास करें।
यदि कोई व्यक्ति आपके पास सहायता के लिए नहीं है, तो आप दीवार के साथ सटकर इसका अभ्यास करें। जब आपका संतुलन कोहनियों और सिर पर होने लगे, तो इसका अभ्यास आप दीवार से हटकर कर सकते हैं।
दूसरा चरण: जब आपका इस स्थिति में रुकने का अभ्यास हो जाए तो घुटनों तक अपने को सीधा करें, एड़ियां नितंबों के साथ ही रहेंगी। इस स्थिति में रहने का अभ्यास करे ।
तीसरा चरण: अब अपने पांवों को बिल्कुल सीधा करें। आपका शरीर सीधा रहना चाहिए और टांगों में तनाव भी नहीं होना चाहिए ताकि रक्त का संचार बराबर होता रहे। जितनी देर आसानी से सिर के बल खड़े रह सकते हैं, खड़े रहें, धीरे-धीरे अभ्यास को बढ़ाकर 5 मिनट तक ले जाएं। वापिस आते हुए भी उसी प्रकार तीन चरणों में धीरे-धीरे वापिस आएं।झटके के साथ नीचे न गिरें। नीचे आते ही कम-से-कम दो मिनट के लिए शवासन में लेट जाएं, ताकि रक्त का संचार व नस-नाड़ियां अपनी स्वाभाविक स्थिति में आ जाएं। ध्यान आज्ञाचक्र पर।
यदि कोई व्यक्ति आपके पास सहायता के लिए नहीं है, तो आप दीवार के साथ सटकर इसका अभ्यास करें। जब आपका संतुलन कोहनियों और सिर पर होने लगे, तो इसका अभ्यास आप दीवार से हटकर कर सकते हैं।
दूसरा चरण: जब आपका इस स्थिति में रुकने का अभ्यास हो जाए तो घुटनों तक अपने को सीधा करें, एड़ियां नितंबों के साथ ही रहेंगी। इस स्थिति में रहने का अभ्यास करे ।
तीसरा चरण: अब अपने पांवों को बिल्कुल सीधा करें। आपका शरीर सीधा रहना चाहिए और टांगों में तनाव भी नहीं होना चाहिए ताकि रक्त का संचार बराबर होता रहे। जितनी देर आसानी से सिर के बल खड़े रह सकते हैं, खड़े रहें, धीरे-धीरे अभ्यास को बढ़ाकर 5 मिनट तक ले जाएं। वापिस आते हुए भी उसी प्रकार तीन चरणों में धीरे-धीरे वापिस आएं।झटके के साथ नीचे न गिरें। नीचे आते ही कम-से-कम दो मिनट के लिए शवासन में लेट जाएं, ताकि रक्त का संचार व नस-नाड़ियां अपनी स्वाभाविक स्थिति में आ जाएं। ध्यान आज्ञाचक्र पर।
शीर्षासन के लाभ
योग की दृष्टि में यह आसन बड़े महत्व का है। शरीर का कोई भी अंग या संस्थान ऐसा नहीं, जो इस आसन से प्रभावित न होता हो।
- मस्तिष्क के तीसरा चरण: पूर्ण स्थिति विकास तथा मानसिक शक्ति को बढ़ाने के लिए विशेषतौर पर इसका महत्व है।
- रक्त संचार, मांसपेशियां, पाचन संस्थान, जनन अंग, श्वास प्रश्वास, हृदय, विसर्जन संस्थान आदि सभी अंगों को यह आसन शक्ति प्रदान करता है।
- योग में इसे बुढ़ापे को दूर रखने वाला आसन बताया गया है ।
- हर्नियां, बवासीर आदि रोग भी इससे ठीक होते हैं ।
- इस आसन के अधिकांश लाभ सर्वांगासन से ही मिल जाते हैं। इसलिए गृहस्थियों को सर्वांगासन करने का ही परामर्श दिया जा रहा है।