वायु मुद्रा के लाभ
वायु मुद्रा, शरीर में वायु तत्व का प्रतीक है। इसे तर्जनी ऊँगली को अंदर की और मोड़ कर अंगूठे से दबाकर किया जाता है। यह मुद्रा, शरीर के अंदर हवा की गति को नियंत्रित करता है। वायु मुद्रा के असंतुलन से संबंधित समस्याओं को वायु मुद्रा का अभ्यास करके आसानी से दूर किया जा सकता है।
कोई भी व्यक्ति इस प्राचीन योगाभ्यास को अपने दिन प्रतिदिन के कार्यक्रम में शामिल करके स्वस्थ या गैस्ट्रिक विकारों से मुक्त हो सकता है।
अंगूठा, अग्नि तत्व और वायु तत्व तर्जनी से जुड़े और उसका प्रतिक है, इस तरह मुद्रा में अंगूठे की आग से वायु तत्व को दबा दिया जाता है। इसे करने के लिए खाली पेट होना आवश्यक नहीं है। आप खड़े, बैठ या लेट कर भी अभ्यास इसका कर सकते है ।
कोई भी व्यक्ति इस प्राचीन योगाभ्यास को अपने दिन प्रतिदिन के कार्यक्रम में शामिल करके स्वस्थ या गैस्ट्रिक विकारों से मुक्त हो सकता है।
वायु मुद्रा के फायदे
- यह वात (वायु) दोषों से होने वाले रोग की जैसे पेट फूलना, अपच, एसिडिटी और गैस्ट्रिक समस्याओं से राहत दिलाता है।
- प्रतिरोधक शक्ति का निर्माण करता है ।
- मैडिटेशन या प्राणायाम में वायु मुद्रा का अभ्यास करने से खुशी और शांति मिलती है ।
- जब इसका नियमित रूप से अभ्यास किया जाता है, तो यह मस्तिष्क को तेज और यादाश बढ़ता है।
वायु मुद्रा की विधि
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- सबसे पहले, किसी भी बैठने की आरामदायक मुद्रा में बैठें और हाथों को हथेली से जाँघों या घुटनों पर ऊपर की ओर रखें।
- पद्मासन, सिद्धासन और वज्रासन आदि मुद्राएं को चुन सकते है ।
- अपनी आँखें बंद करें गहरी साँसें लें।
- अब अपनी तर्जनी ऊँगली को मोड़ें और अपने उसे अंगूठे से दबाएं।
- बाकी तीनों उंगलियों को जितना संभव हो उतना सीधा रखे ।
- इस मुद्रा को रोजाना तीन बार 10 से 12 मिनट तक करें।
अंगूठा, अग्नि तत्व और वायु तत्व तर्जनी से जुड़े और उसका प्रतिक है, इस तरह मुद्रा में अंगूठे की आग से वायु तत्व को दबा दिया जाता है। इसे करने के लिए खाली पेट होना आवश्यक नहीं है। आप खड़े, बैठ या लेट कर भी अभ्यास इसका कर सकते है ।
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