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पल्विनि प्राणायाम एक तरह का योग नहीं बल्कि एक तरह सांस लेने और छोड़ने का तरीका है जिससे हम अपने शरीर की जीवन शक्ति को नियंत्रित करते हुए अपने शरीर को हल्का कर सकते है। अगर प्लाविनी प्राणायाम योग नहीं तो और क्या है आपके दिमाग में भी यही सवाल आ रहा होगा तो आइए पहले जानते है की योग और प्राणायाम दोनों में क्या अंतर है। 

योग की संकल्पना तक़रीबन ५००० हज़ार साल पुरानी है , और योग की खोज का श्रेय 'महर्षि पतंजलि' जी को दिया जाता है जिन्हे 'शेषनाग' का अवतार भी माना गया है। अगर हम योग को परिभाषित करें तो इसकी संकल्पना प्राणायाम से कहीं अधिक बड़ी है, क्योंकी प्राणायाम की संकल्पना भी योग के अंतर्गत ही आती है। योग के अंतर्गत और कईं संकल्पनाएँ आती है जैसे की

  • यम
  • नियम
  • आसन
  • प्राणायाम
  • प्रत्याहार
  • धारण
  • ध्यान
  • समाधी
ये तो हमने जान लिया योग के इतिहास और उसकी संकल्पना के बारे में अगर अब बात करे प्राणायाम के बारे में तो भले ही इसकी संकल्पना योग की संकल्पना से छोटी है मगर प्राणायाम का इतिहास योग के इतिहास से कहीं ज्यादा अधिक पुराना है, और प्राणायाम की खोज स्वयं महादेव ने लगभग ७००० हज़ार साल पहले की थी। प्राणायाम संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है ‘प्राण’ जिसका अर्थ है ‘चेतना शक्ति’ और आयाम का अर्थ है ‘नियंत्रण', इसका मतलब यह हुआ की भगवान द्वारा प्राप्त अमूल्य प्राण शक्ति जो हमे मिली है उसे किस प्रकार हम नियंत्रित करते हुए भगवान द्वारा प्राप्त इस मनुष्य जीवन को स्वारं सकते है या उसमे और अधिक सुधार ला सकते है।

प्लाविनी प्राणायाम क्या है आइए जानते हैं ?

प्लावन एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है तैरना। इसे ऐसे समझते है जैसे कमल के फूल का पत्ता पानी के सतह पर तैरता रहता है उसी प्रकार इस प्राणायाम को नियमित रूप से करने वाला व्यक्ति , अपने शरीर को इतना हल्का बना सकता है की उसका शरीर भी कमल के पत्तो के सामान पानी के सतह पर तैरता रहे। प्लाविनी प्राणायाम एक तरह की श्वास क्रिया है अर्थात एक तरह का व्यायाम है जिसे कोई भी व्यक्ति कर सकता। इस प्राणायाम में श्वासों को नासिका के सहारे शरीर के अंदर लिया जाता है और बाहर छोड़ा जाता है। इतना तो हम सब जानते है की वांछित परिणाम को पाने के लिए किसी भी मनुष्य को बहुत अभ्यास करना पड़ता है और किसी भी क्रिया का बार-बार अभ्यास करने से मनुष्य के अंदर परिपक्वता आती है , तभी हम उस क्रिया से जुड़े परिणाम का लाभ सही तरीके से प्राप्त कर पाते है। ये प्राणायाम दूसरे प्राणायामों से कितना अलग है और इसे करने की प्रक्रिया क्या है अब इसे जान लेते हैं।

इस प्राणायाम को आसानी से करने की प्रक्रिया ही इसे दूसरे प्राणायामों से अलग बनाती है। इस बात को अच्छे से समझने के लिए हमें इसकी प्रक्रिया को समझना होगा।

 

प्लाविनी प्राणायाम करने की विधि

शुरुआती लोगों को फेफड़ों (lungs) की श्वास-धारण (breathing retention) क्षमता को शुरू में बढ़ाने के लिए ध्यानस्थ (meditative) बैठे आसनों में प्लाविनी प्राणायाम करने की सलाह दी जाती है इसी तरह बार-बार अभ्यास करने से जो लोग नए है और इस प्राणायाम को कर रहे है उनमे परिपक्वता आएगी और फिर वह किसी भी तरह के आसन में इसे आसानी से कर पाएंगे।

कुछ ध्यानस्थ आसन जैसे की सिद्धासन, वज्रासन, सुखासन, पद्मासन ये कुछ तरह के आसन है जिन्हे प्लाविनी प्राणायाम के साथ किया जाता है। इस प्राणायाम का सबसे बढ़िया लाभ आप शवासन करते वक़्त उठा सकते है। अब हम इसकी प्रक्रिया को विस्तार से जान लेते है ।

जो लोग नए है और इस प्राणायाम को करना चाहते है और इस पर महारत हासिल करना चाहते है उन्हें कुछ चरणों (steps) का अनुसरण करना पड़ेगा -

सबसे पहले वज्रासन , सिद्धासन या फिर पद्मासना जैसे किसी योग भाव में बैठ जायें और ध्यान को केंद्रित करने की कोशिश करे अपनी चेतना को शांत रखे और जितना हो सके कम सोचने की कोशिश करे। कुछ बातों का आपको ध्यान रखना होगा। पहली बात की जब आप उपरोक्त किसी आसन में बैठे हुए है तो रीढ़ की हड्डी , गर्दन और सर को बिलकुल सीधा रखे जैसे की जब सैनिकों को सावधान बोला जाता है और वो बिलकुल सीधे खड़े होते है उसी प्रकार जब आप उपरोक्त किसी आसन में बैठे हुए है तो आपका शरीर भी उसी प्रकार सीधा होना चाहिए।

दूसरी बात जिसका आपको ध्यान रखना है , वह यह है की आपको अपने शरीर को जितना हो सके आराम देने की कोशिश करे , शरीर को न तो ज्यादा ढीला छोड़ना है न ही ज्यादा तनाव देने की कोशिश करनी है जितना आप आराम से बैठ सकते है उपरोक्त किसी आसान में आप बैठे और अपने नाक से सांसों को अपने फेफडों और पेट में भरे और छोड़े , इससे भाव ये है की जो लोग नए है और इस प्राणायाम को पहली बार कर रहे है उन्हें अपनी सांसों पे ध्यान केंद्रित करने का अभ्यास करना है। 

प्लाविनी प्राणायाम - Plavini Pranayama in Hindi
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जब शुरुआती लोग अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करने में सफल हो जाये तो उनके लिए अब अगले चरण पर बढ़ने का समय हो गया है ।

  • सबसे पहले आप अपने क्षमता (capacity) के अनुसार लम्बी सांस ले और कुम्भक कर ले। कुम्भक का अर्थ है सांसों को रोक कर रखने की कोशिश करे और याद रखें की आप अपने फेफड़ों और हृदये पर ज़्यादा दबाव न डाले।
  • साँसों को फेफड़ों और पेट में भरने के बाद रोकने के लिए सबसे अच्छा तरीका है जालंधर बंध का , जालंधर बंध में आपको अपनी गर्दन को आगे की तरफ झुकाना है जैसे हम भगवान के आगे हम प्रार्थना करते वक़्त झुकाते है।
  • अब सांस छोड़ने के लिए धीरे-धीरे गर्दन को सीधा करे और धीरे-धीरे सांस को छोड़ते जाये, और ध्यान रखे हमने आपको पहले भी बताया है की आपसे जितना हो सके उसी अनुसार आप सांसों को रोक कर रखे , बार-बार अभ्यास करने से ही आपकी क्षमता बढ़ेगी सिर्फ इस बात को शुरुआती लोगों को समझना है।
  • इससे होगा क्या की जब आप इस प्राणायाम को नियमित रूप से करने लगेंगे तो आपका शरीर अपने सही आकार में आने लगेगा और पेट के अंगों में फुलावट आने से वो भी अपने सही आकार में आने लगेंगे।
  • इस प्रक्रिया को आप रोज़ाना 4 से 5 बार दोहराएं। 

 

प्लाविनी प्राणायाम के लाभ

  • इस प्राणायाम को करने से पाचन क्रिया में सुधार आता है और जिन्हे कबज़ की शिकायत है उन्हें इस प्राणायाम को करने से लाभ मिलता है।
  • मनुष्य की ध्यान शक्ती में इज़्ज़ाफ़ा होता है और इससे स्मरण शक्ति में भी सुधार आता है।
  • इस प्राणायाम को नियमित रूप से करने वालों की उम्र बढ़ती है।
  • इस प्राणायाम को दिमाग के लिए काफी मुफीद माना गया है।
  • मन को शांत और तनाव को काम करने के लिए ये प्राणायाम काफी लाभदायक सीधा होता है।
  • तैराकी में महारत हासिल करने के लिए इस प्राणायाम को सबसे अच्छा माना गया है। 

 

इस प्राणयाम को करने से पहले कुछ सावधानियों को बरतें

  • इस प्राणायाम का अभ्यास आपको केवल किसी विशेषज्ञ की निगरानी में ही करे।
  • इस प्राणायाम को आप खाली पेट ही करे कम से कम भोजन करने के 5-6 घंटे बाद।
  • अगर आपको पेट या छाती में दर्द है तो इस प्राणायाम को बिलकुल भी न करे।
  • अगर आपको लिवर से सम्बंधित कोई भी समस्या है तो भी इस प्राणायाम को करना निषेध है।
  • इस प्रणायाम को सिर्फ शांत स्वभाव में करें।